एक गांव ऐसा, जहां हर घर में कलाकार
जबलपुर । जनजातीय बहुल डिंडौरी जिले में एक गांव ऐसा है, जहां हर परिवार में एक या एक से अधिक सदस्य कलाकार है। गोंडकालीन पुरानी रंग कला को आजीविका के रूप में अपना कर यहां के कलाकार इस प्राचीन कला को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। मप्र सरकार के विभिन्न उपक्रम इनकी बनाई कलाकृतियों की मार्केटिंग भी करवाती है और इन्हें उचित राशि दिलाने का प्रयास भी करती है। डिंडौरी-अमरकंटक मार्ग पर बसे पाटनगढ़ गांव में 500 से 600 घर हैं। हर घर में एक न एक या एक से अधिक कलाकार मिल जाएंगे। ये अपनी प्राचीन परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। ये कागज की शीट पर अपनी कलाकृतियां रंगों से उकेरते हैं। इनकी कलाकृतियां 2 से 5 हजार रुपए तक में बिकती हैं। इनकी कला को प्रोत्साहित करने के लिए हस्तशिल्प विकास निगम,लोक-कला परिषद, मानव संग्रहालय आदि मदद करते हैं और इनकी रचनाओं को प्रदर्शनी या अन्य माध्यमों से प्रचारित करवाकर उचित दाम दिलवाते हैं। समय के साथ बढ़कर मिलने वाले परिश्रमिक के चलते अब गांव में हर घर में एक कलाकार हो गया है।
लगता है बहुत समय
अपनी कला के बारे में कलाकार राजकुमार श्याम बताते हैं कि एक कलाकृति को पूरा करने के लिए औसतन 2 से 4 दिन का समय लगता है।
इसमें इतना बारीक काम होता है कि समय कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता। हर कलाकृति को पूरा करने के बाद अंदर से संतुष्टि मिलती है। इस काम में पुरुष-महिला का भेद नहीं है। जिसकी अभिरुचि होती है, वह यह काम करता है।
आॅन लाइन बिक्री का प्रयास
जबलपुर के भंवरताल की कल्चरल स्ट्रीट में 4 दिनी गोंड पेन्टिंग वर्कशाप के तहत पाटनगढ़ से 30 कलाकारों ने शिरकत की।
इनमें से आधी संख्या महिलाओं की रही। इस कार्यशाला के बाद खास बात यह है कि निगमायुक्त वेदप्रकाश ने इन सभी गोंड कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों की बिक्री आॅन लाइन कराने का निर्णय लिया है। इससे इन्हें अधिक दाम मिल सकते हैं और प्रचार-प्रसार भी अधिक प्राप्त होगा।
गेरू, मिट्टी की जगह ली फेब्रिक एक्रेलिक कलर्स ने
पुराने समय में आदिवासी समाज के गांवों में उनके घर,आंगन में लोग कलाकृतियां बनाते थे। दीवारों पर गेरू,मिट्टी में रंग मिलाकर लाल,पीला,नीला रंग तैयार कर इनसे कलाकृतियां बनाई जाती थीं।
इनमें गोंड समाज के देवताओं से लेकर अन्य शुभ चिन्ह बनाए जाते थे। अब समय बदल चुका है। अब ये कलाकार फेब्रिक कलर्स और एक्रेलिक कलर्स का इस्तेमाल करते हैं। कागज की 1 वाई 1, 2 वाई 2 या 3 वाई 3 वर्ग फीट की शीटों पर कलाकृतियां उकेरी जाती हैं।
Next article
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक