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लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक 

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक 

 

डॉक्टर सैय्यद खालिद कैस 

संस्थापक अध्यक्ष 

प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत 

 

 सम्पूर्ण भारत में पत्रकारों पर हमले हत्या तथा हत्या के प्रयासों की आये दिन घटित घटनाओं के बीच विगत छत्तीसगढ राज्य के बस्तर क्षेत्र में गंगालूर से हिरोली तक 120 करोड़ रुपये की सड़क निर्माण परियोजना में कथित भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले छत्तीसगढ़ के बीजापुर के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निमर्म हत्या ने एक बार भी यह साबित कर दिया है कि प्रदेश सरकारे निष्पक्ष पत्रकारिता एंव भ्रष्टाचार उजागर करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा में फैल साबित हो रही है। देश भर में पत्रकारों की हत्या ,हत्या के प्रयास और झूठी प्राथमिकी दर्ज होना अब साधारण सी बात हो गई है। ऐसे में देश भर में पत्रकार सुरक्षा कानून की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता है। देश भर में प्रदेश सरकारों का पत्रकार सुरक्षा के प्रति उदासीन व्यवहार चिंता का विषय है।

पत्रकारों की सुरक्षा के लिहाज से बनाई गई 180 देशों की सूची में भारत का 162वां नंबर पर होना कोई शुभ संकेत नहीं। सरकारों की उदासीनता का ही परिणाम है कि भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता, स्वतंत्र पत्रकारिता जोखिम भरा कार्य हो गया है। देश भर में घटित घटनाएं इस बात का घोतक है भ्रष्टाचार, अपराध और उनको संरक्षण देने वाले तत्व चाहे वह राजनैतिक हो या व्यापारिक हर कोई पत्रकारों की आवाज दबाना चाहते हैं।छत्तीसगढ़ की घटना इसी का प्रमाण है।

ऑब्जर्वेटरी ऑफ किल्ड जर्नलिस्ट्स, यूनेस्को के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में भारत में 17 पत्रकारों की हत्या कर दी गई। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर की वेबसाइट का दावा है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिहाज से बनाई गई 180 देशों की सूची में भारत का 162वां नंबर पर है, यानी स्थिति नाजुक है। पत्रकारों के लिए सबसे सुरक्षित देश लग्ज़मबर्ग को माना गया है। यह पहले स्थान पर है। वहीं, सीरिया सबसे असुरक्षित देश है। वह सबसे अंतिम यानी 180वें पायदान पर है। इसी लिस्ट में ब्रिटेन 50वें नंबर पर है। वहीं, अमेरिका 118वें पायदान पर खड़ा हुआ है। पाकिस्तान का 169वां नंबर है।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर की वेबसाइट के अनुसार, भारत में हर साल औसतन तीन से चार पत्रकारों की हत्या होती है। कई बार पत्रकारों को ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकी, डर और हमलों के साथ आपराधिक मुकदमों और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है। ऑब्जर्वेटरी ऑफ किल्ड जर्नलिस्ट्स, यूनेस्को की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 1993 से अब तक दुनियाभर में 1 हजार 728 पत्रकारों की हत्या हुई है, इसमें एशिया में 457 और भारत में 60 पत्रकारों को मार दिया गया। पाकिस्तान की स्थिति और भी खराब है। 1993 से लेकर अब तक पाकिस्तान में 101 पत्रकारों की हत्या की गई है।

मध्यप्रदेश के सागर के शाहगढ़ में 40 साल के पत्रकार चक्रेश जैन की जलने से संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत हो या भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा को डंपर से कुचलकर मारा । देश भर में हुई इस तरह की घटनाएं निष्पक्ष पत्रकारिता को नष्ट करने पर आमादा हैं।

पत्रकारों पर हमले या हत्या के पीछे असहमति और आलोचना है जिसके ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के शिकार पत्रकार अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।NCRB के आँकड़े बताते हैं कि 2013 से 2023 के बीच लगभग 40 पत्रकारों की हत्या की गई। इनमें से अधिकांश हत्याएं छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में हुईं।50% से अधिक मामलों में जांच के बावजूद न्याय नहीं मिल सका। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' के अनुसार 2021 में भारत 180 देशों में 142वें स्थान पर था।2023 में यह स्थिति और भी खराब हुई, और भारत को "पत्रकारों के लिए खतरनाक" देशों की श्रेणी में रखा गया।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक है अन्यथा देश भर में छत्तीसगढ़ जैसी घटनाएं दृश्यमान होंगी जो निष्पक्ष पत्रकारिता के शुभ संकेत नहीं ।ऐसे में देश भर की प्रादेशिक सरकारों को अविलंब पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करके पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक 

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों/ रक्षकों तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के संवाहकों की रक्षा नितांत आवश्यक