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व्यापमं घोटाले की साजिश -सीबीआई ने व्यापमं घोटाले के आरोपियों पर दागे सवाल

भोपाल। अरबों रुपए के व्यापमं घोटाले की साजिश महज चार दिन 23 से 26 अप्रैल 12 में रच दी गई थी। यह खुलासा सीबीआई की चार्जशीट में हुआ, जो व्यापमं मामले की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायधीश डीपी मिश्रा की कोर्ट में पेश की गई है। पूरे घोटाले को पीएमटी-2012 परीक्षा फॉर्म भरने के तरीके में बदलाव करके अंजाम दिया गया। बदलाव के पीछे की वजह सरकार के नए नियमों को बताया गया। घोटाले की कहानी शुरू होती है 5 अप्रैल 2012 को चिकित्सा शिक्षा के उपसचिव एसएस कुमरे द्वारा जारी किए उस पत्र से, जिसमें उन्होंने सरकार के नए नियमों का हवाला देते हुए व्यापमं को पीएमटी आयोजित कराने को कहा गया। इसी पत्र पर 23 अप्रैल को व्यापमं के संयुक्त नियंत्रक संतोष गांधी सक्रिय होते हैं। आनन-फानन वे परीक्षा की निर्देशिका (रूल बुक) तैयार कर देते हैं। जिसके अनुसार परीक्षा फॉर्म ऑनलाइन भरवाए जाने थे। ऑफलाइन के बजाय ऑनलाइन फॉर्म भरवाना साजिश का अहम हिस्सा था। परीक्षा निर्देशिका में बदलाव के लिए नियंत्रक पकंज त्रिवेदी द्वारा केवल मौखिक निर्देश दिए गए। इस नीतिगत बदलाव को व्यापमं की चेयरपर्सन रंजना चौधरी ने भी 23 अप्रैल को ही मंजूरी दे दी। इसके बाद ऑनलाइन परीक्षा फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। लेकिन, इसकी सूचना चिकित्सा शिक्षा विभाग, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय जबलपुर को भी नहीं दी गई, जबकि विभाग व विवि के द्वारा पारित नियमों में यह स्पष्ट था कि परीक्षा फॉर्म ऑफलाइन ही भरवाए जाने हैं। इसके बाद परीक्षा ऑनलाइन करने के लिए फाइल 25 अप्रैल को प्रिंसिपल सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा को भेज दी गई। यहां घोटाले की साजिश को अंतिम रूप दिया गया। नितिन महिंद्रा यह जानता था कि परीक्षा फॉर्म ऑनलाइन भरवाए गए तो सवाल खड़े हो जाएंगे, क्योंकि इस बदलाव के लिए कार्यकारी परिषद की मंजूरी आवश्यकता थी। लिहाजा 26 अप्रैल को इसमें भी नियंत्रक पकंज त्रिवेदी ने रास्ता निकाला और निर्देशिका में भी बिना चेयरपर्सन रंजना चौधरी की मंजूरी लिए बदलाव कर दिया। यह बदलाव परीक्षा फॉर्म में 25 से 30 शब्द आवेदक से लिखवाकर ऑनलाइन भरवाने का किया गया, ताकि बगैर किसी बाधा के परीक्षा फॉर्म ऑनलाइन लिए जा सकें। इसके बाद 30 अप्रैल 2012 को परीक्षा का कार्यक्रम जारी कर दिया गया। फॉर्म भरने की अंतिम तारीख 20 मई 2012 थी और परीक्षा की तारीख 10 जून थी। इस नोटिफिकेशन के आधार पर 38677 आवेदन एमपी ऑनलाइन के माध्यम से प्राप्त हुए थे। फिर आगे की प्रक्रिया पूरी तरह साजिश के तहत ही पूरी हुई। जिसमें रोल नंबरों का आवंटन भी मनमाफिक किया गया। इस साजिश को व्यापमं के अकिारी पकंज त्रिवेदी, नितिन महिंद्रा, अजय कुमार सेन और सीके मिश्रा ने दलाल जगदीश सागर, संजीव शिल्पकार और संतोष गुप्ता के साथ मिलकर अंजाम दिया। सीबीआई ने जांच से किया इंकार, एसटीएफ छोड़ गोविंदपुरा थाने पहुंचा मामला आरक्षक भर्ती परीक्षा वर्ष 2013 व 2014 का एक आपराधिक मामला एसटीएफ, सीबीआई और गोविंदपुरा पुलिस के बीच पिछले दो सालों से घूमता नजर आ रहा है। सीबीआई ने पहले इसकी जांच से इंकार कर दिया और मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी। एसटीएफ ने भी पल्ला झाड़ते हुए इसे क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए गोविंदपुरा पुलिस को सौंप दिया। मामले में आरोपी की जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए जब अदालत के सामने यह तथ्य आए तो न्यायाधीश महोदय ने सरकारी वकील से पूछा की यह क्या है? सरकारी वकील ने तर्क दिया कि यह मामला व्यापमं घोटाले से जुड़ा हुआ है इसलिए इसकी जांच भी सीबीआई को करनी चाहिए। सुप्रीमकोर्ट द्वारा भी सभी व्यापमं घोटाले मामलों की जांच सीबीआई को ही सौंपने के निर्देश दिए हैं। अपर-सत्र न्यायाधीश एससी उपाध्याय ने शनिवार को उक्त आदेश करते हुए सीबीआई एसपी, एसपी उत्तर भोपाल, पुलिस निदेशक एसटीएफ और गोविंदपुरा थाना प्रभारी को नोटिस जारी कर सोमवार को उपस्थित होने को कहा है। मामले में आरोपी की जमानत अर्जी पर भी सोमवार को सुनवाई होगी। क्या है मामला पुलिस अधीक्षक ग्वालियर को 24 मार्च 2015 को लिखित शिकायत प्राप्त हुई थी कि गोविंदपुरा स्थित सत्यसांई कॉलेज में आयोजित पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा वर्ष 2013 व 2014 में दिलीप धाकड़ अभ्यर्थी था। परीक्षा में उसके स्थान पर कोई और शामिल हुआ था। परीक्षा में दिलीप धाकड़ उत्तीर्ण हो गया है और आरक्षक पद पर पदस्थ है। व्यापमं से जुड़ा मामला होने के कारण एसपी ग्वालियर ने शिकायत की जांच एसटीएफ को सौंप दी। एसटीएफ जांच कर रही थी, इसी बीच सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बाद व्यापमं से जुड़े सभी मामले सीबीआई को सौंप दिए गए। एसटीएफ ने यह मामला भी 30 मई 2015 को सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने कुछ दिन मामले को अपने पास रखकर पुन: एसटीएफ को भेज दिया। व्यापमं मामले में बुरी तरह शर्मिंदगी झेल चुकी एसटीएफ ने पल्ला झाड़ते हुए इसे गोविंदपुरा क्षेत्र का मामला बताते हुए एसपी भोपाल को भेज दिया। मामला गोविंदपुरा पुलिस के पास पहुंचा तो उन्होंने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद आरोपी दिलीप ने अदालत में अपनी जमानत अर्जी पेश की थी।
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