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व्यापम घोटाला -बड़े शिक्षा संस्थानों की विश्वस्नीयता पर प्रश्न चिन्ह

* मीडिया अब भी पूरा सच उजागर करने से कर रहा है परहेज़ *विपक्ष यानि कांग्रेस पार्टी का विरोध भी चल चला चलवाला । *यंग विधायक जीतू पटवारी से ज़ोरदार आवाज़ बुलन्द करने की अपेक्षा। वेसे तो व्यापम घोटाला सामने आने के बाद उसकी गम्भीरता का एहसास सभी को हुआ पर सी बी आई द्वारा हाल ही में पेश की गई चार्जशीट में कई चोंकाने वाले तथ्य उभरकर सामने आये हैं। राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के बड़े शिक्षा संस्थानो की घोटाले में संलिप्तता और उनके सम्मानियों (मालिकों_कर्ताधर्ताओं) के चेहरे से उठा नक़ाब बहुत कुछ बयां करता है। शिक्षा के इन सफेद पोश व्यापारियों को क़ानून कब अपनी गिरफ्त में लेगा यह देखना अभी बाकी है हालांकि एक दो मछलिया फंस चुकी हैं लेकिन बड़े मगरमछ अभी भी गोताज़न(रूपोश अथवा भूमिगत) हैं। बड़ा प्रश्न* इस शिक्षा घोटाले का परत दर परत जो काल चेहरा सामने आ रहा उसके बाद आरोपित संस्थानो की विश्वसनीयता के क्या मायने ? *इन संस्थानों यह शब्द शायद छोटा हे एम्पायर खड़े करने में लगा अपार धन कहां से आया ?किसका लगा ?इसकी जांच भी वांछित है? और यह तब तक सम्भव नही जब तक व्यापम के काले कुबेर व्यापारी क़ानून की गिरफ्त में न आजायें। जगत मीडिया में चर्चा है की सब बचने_बचाने की जुगत में हैं ।मीडिया भी बहुत कुछ उजागर करने में पसोपेश में हे। पढ़ेलिखे वर्ग को उम्मीद है कि जांच एजेंसी cbi दूध का दूध और पानी का पानी करेगी। काश ऐसा ही हो और एक नज़ीर बने। सूचनाये हैं कि इस घोटाले में लिप्त काले कुबेरों का केंद्र सरकार ने संज्ञान लिया है और हालात पर उसकी नज़र है और सहित अन्य एजंसियां पंजा मारने को चौकस हैं। आगे देखें क्या होता है ।

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रियाज़ खान चितौड़गढ़ के नेतृत्व में पत्रकारों ने दिया ज्ञापन

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